Sri Lanka Economic Crisis: श्रीलंका (Sri Lanka) में जनता के मुश्किल दिन काफी पहले शुरू हो चुके थे। पर अब तो जनता का गुस्सा चरम पे चल रहा है। आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका (Sri Lanka Economic Crisis) में हालात अब इतने बुरे हो चुके हैं, वहां के लोग कई महीनो तक जब देश में खाने-पीने की जरूरी चीजों से लेकर पेट्रोल-डीजल (Diesel-Petrol) तक की किल्लत बनी हुई है। महंगाई से परेशान जनता सड़कों पर उतर आई है। आखिर कैसे सोने की लंका इतनी कंगाली के स्तर पर पहुंच गई. क्या आप जानते हैं कि किन वजहों से श्रीलंका (Sri Lanka) के ऐसे हालात बने कि महंगाई से त्रस्त जनता ने देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पर ही धावा बोल दिया।
श्रीलंका में हालात बद से बदतर होते दिख रहे हैं। श्रीलंका के संकटग्रस्त राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे शनिवार को राजधानी में अपने आधिकारिक आवास से भाग गए। श्रीलंका में प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के निजी आवास में घुसकर आग लगा दी। 22 मिलियन लोगों का यह द्वीप एक गंभीर विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहा है, जिसने ईंधन, भोजन और दवा के आवश्यक आयात को सीमित कर दिया है, जिससे यह सात दशकों में सबसे खराब वित्तीय उथल-पुथल में डूब गया है।
केमिकल फर्टिलाइजर्स का बैन
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के लिए एग्री सेक्टर सबसे बड़ा और अहम है. श्रीलंका में छाए हालात की तात्कालिक वजह सरकार का वो निर्णय है, जिसमें सरकार ने देश को ऑर्गेनिक खेती का हब बनाने के लिए केमिकल खेती या फर्टिलाइजर्स को एक झटके में पूरी तरह से बैन कर दिया। अचानक हुए इस फैसले ने श्रीलंका के एग्रीकल्चर सेक्टर (Sri Lanka Agri Crisis) को तबाह कर दिया. एक अनुमान के मुताबिक सरकार के इस फैसले के चलते श्रीलंका का एग्री प्रोडक्शन आधा रह गया है। जो होना ही था क्युकी केमिकल खेती से डायरेक्ट ऑर्गेनिक खेती पे आते है तो एग्री प्रोडक्शन आधा भी ना हो, अभी हाल यह है कि देश में जरुरी खाने के सामान की भी किल्लत हो गई है। इन सबके साथ ही अनाज की जमाखोरी समस्या को और गंभीर बना रही है. वहीं खेती करने वाली एक बड़ी आबादी ने खेती से दूरी बना ली है।
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कोविड से टूरिज्म सेक्टर की मार
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के लिए एग्री के बाद श्रीलंका टूरिज्म (Sri Lanka Tourism) बड़ा और अहम सेक्टर है. टूरिज्म श्रीलंका की जीडीपी में 10 फीसदी का योगदान देता है. कोरोना महामारी के चलते दो साल में टूरिज्म सेक्टर तबाह हो चुका है. श्रीलंका में सबसे ज्यादा भारत, ब्रिटेन और रूस से टूरिस्ट आते हैं. कोरोना महामारी की पाबंदियों के चलते टूरिस्ट की आवक बंद हो गई । इसके साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से भी रूस और यूरोप के टूरिस्टों का आना कम हुआ है. कनाडा ने भी करेंसी एक्सचेंज की समस्या का हवाला देकर हाल ही में ऐसी एक एडवाइजरी जारी की, जिससे श्रीलंका की आय पर बुरा असर पड़ा।
चीन के कर्ज का बोझ
दुनिया भर के एनालिस्ट जब चीन की ऋणपाश नीति (Chinese Debt Trap Policy) का जिक्र करते हैं, तो श्रीलंका का स्वाभाविक उदाहरण दिया जाता है. श्रीलंका के ऊपर अकेले चीन का 5 बिलियन डॉलर से ज्यादा का कर्ज है. वहीं भारत और जापान जैसे देशों के अलावा आईएमएफ (IMF) जैसे संस्थानों का भी लोन उधार है. सरकारी आंकड़ों की बात करे तो अप्रैल 2021 तक श्रीलंका के ऊपर कुल 35 बिलियन डॉलर का विदेशी कर्ज था. श्रीलंक के ऊपर इस भारी-भरकम विदेशी कर्ज का ब्याज व किस्त चुकाने का भी बोझ है, जिसने आर्थिक हालात को और बिगाड़ा।
घटती करेंसी की वैल्यू, गिरता फॉरेक्स रिजर्व
विदेशी मुद्रा भंडार के पर भी श्रीलंका को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. आप देख सकते है की तीन साल पहले श्रीलंका के पास 7.5 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था. और जुलाई 2021 में यह तेजी से गिरावट के साथ महज 2.8 बिलियन डॉलर रह गया. नवंबर 2021 तक यह और गिरकर 1.58 बिलियन डॉलर के स्तर पर आ गया था. श्रीलंका के पास विदेशी कर्ज की किस्तें चुकाने लायक भी फॉरेक्स रिजर्व नहीं बचा. विदेशी मुद्रा भंडार कम होने से श्रीलंकाई रुपये की वैल्यू कम होती गई और इससे महंगाई की समस्या ने और विकराल रूप ले लिया.
आयात पर निर्भरता
श्रीलंका (Sri Lanka Crisis) की ताजी समस्या को गंभीर बनाने में खाने-पीने की चीजों के लिए भी आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर होना भी अहम फैक्टर है. श्रीलंका चीनी, दाल, अनाज, दवा जैसी जरूरी चीजों के लिए भी आयात पर निर्भर है. खेती में केमिकल फर्टिलाइजर बैन ने इसे और ज्यादा गंभीर बना दिया.
- श्रीलंका संकट पर भारत की ओर से पहली प्रतिक्रिया आयी है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि हम अपने पड़ोसी देश के लिए हमेशा मददगार रहे हैं और आगे भी मदद की जाएगी. उन्होंने कहा कि, इस वक्त वो परेशानी से जूझ रहे हैं इसलिए अभी हम थोड़ा से इंतजार करेंगे.