2 जुलाई 1995, गोल मार्केट, नई दिल्ली
सरकारी फ्लैट नंबर 8/2ए, रात के साढ़े आठ बजे
अचानक इस सरकारी क्वार्टर के फ्लैट नंबर 8/2ए से गोलियां चलने की आवाज आती है. पड़ोसियों को लगा कि शायद किसी ने पटाखे छोड़े हैं. लिहाज़ा कुछ देर बाद हर तरफ खामोशी छा जाती है. थोड़ा वक्त बीतता है. इसके बाद अचानक फ्लैट का दरवाजा खुलता है. एक साया पॉलीथीन में रखी कोई वजनी चीज घसीटता हुआ फ्लैट से बाहर निकलता है. बाहर एक कार खड़ी थी. साया पॉलीथिन को उठा कर कार की डिकी में रखता है और फिर डिकी बंद कर ड्राइविंग सीट पर बैठते ही कार को तेजी से भगा ले जाता है।
रात करीब साढ़े नौ बजे ‘आईटीओ पुल’ अंधेरा गहराता जा रहा था और सड़क पर धीरे-धीरे ट्रैफिक की भीड़ भी कम होती जा रही थी. कार चलाने वाला आईटीओ पुल पर पहुंचने के बाद तेजी से इधऱ-उधर देखता है. उसे शायद किसी खास मौके की तलाश थी. पर मौका शायद मिल नहीं रहा था। लिहाज़ा पुल के कुछ चक्कर काटने के बाद वो पुल के बीचो-बीच किनारे अपनी कार रोक देता है. कार का इंजिन बंद करता है और नीचे उतरता है.
दरअसल उसका इरादा कार की डिकी में रखी पॉलीथिन को पुल के नीचे यमुना में फेंकने का था. लेकिन पुल पर अब भी ट्रैपिक था. लोग लगातार आ-जा रहे थे. लिहाज़ा उसे मौका नहीं मिलता कि वो पॉलीथिन को यमुना में फेंक सके. उसे डर था कि कहीं किसी ने उसे पॉलीथिन फेंकते देख लिया तो उसकी पोल खोल जाएगी.
लिहाज़ा डर के मारे वो वापस कार में बैठता है और कुछ सोचने लगता है. तभी अचानक उसके दिमाग में बिजली की तरह एक और तरकीब कौंधती है. वो फौरन कार का रुख मोड़ देता है. अब कार वापस क्नॉट प्लेस की तरफ भागती है. क्नॉट प्लेस पहुंचते ही इस बार कार अशोक यात्री निवास के अंदर बगिया रेस्तरां के पास जाकर रुकती है.
“नैना साहनी तन्दूर हत्याकांड की एक शिकार थी। उनकी हत्या उनके पति सुशील शर्मा ने 2 जुलाई 1995 को की। दिल्ली युवक कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष और तत्कालीन विधायक सुशील शर्मा ने नैना के अन्य प्रेम सम्बंध होने के शक में उसकी हत्या की। नैना भी कांग्रेस कार्यकर्ता थी। सुशील के अनुसार नैना के सम्बंध करीम मतलूब से थे। 2 जुलाई 1995 को जब सुशील घर आया तो नैना फोन पर बात कर रही थी। उन्होंने पुनः डायल किया तो पत चला कि वो करीम से बात कर रहीं थी। उसने गुस्से में आकर नैना पर लाइसेंसी रिवाल्वर से ताबड़तोड़ तीन फायर कर दिए। इसमें नैना की मौत हो गई। पुलिस के अनुसार सुशील नैना के शव को लपेटकर अशोक यात्री निवास (अब इन्द्रप्रस्थ होटल) स्थित बगिया रेस्टोरेंट ले गये। वहां उसने नैना की लाश को तंदूर में झोंक दिया। सुशील ने रेस्टोरेंट के मैनेजर केशव की मदद से नैना के शव को तंदूर में जलाने की कोशिश की। इसी कारण इसे तन्दूरी हत्याकांड भी कहा जाता है।”
रात करीब साढ़े दस बजे ‘बगिया रेस्तरां’ अशोका यात्री निवास होटल (अब इन्द्रप्रस्थ होटल), क्नॉट प्लेस
रेस्तरां में उस वक्त भी कुछ लोग बैठे खाना खा रहे थे. कार रेस्तरां में पार्क करने के बाद कार से वही शख्स उतरता है और रेस्तरां के मैनेजर केशव के पास पहुंचता है. दरअसल कार चलाने वाला कोई और नहीं बल्कि दिल्ली यूथ कांग्रेस का प्रेसिडेंट सुशील शर्मा था और ये रेस्तरां तब सुशील शर्मा का ही था.
कार से उतरने के बाद घबराया सुशील शर्मा केशव से फौरन रेस्तरां बंद करने को कहता है. इसके बाद ग्राहकों के वहां से निकलते ही रेस्तरां की बत्ती भी बुझा दी जाती है. पर रेस्तरां का तंदूर अब भी जल रहा था. क्नॉट प्लेस के इस इलाके में तंदूर का धधकना या तंदूर का जलना रोजमर्रा की बात थी. लोग देर रात यहां खाना खाने आते थे. मगर उस रात तंदूर में जो होने जा रहा था वैसा शायद ही उससे पहले दुनिया के किसी तंदूर में हुआ था. तंदूर जली पर ऐसी जली कि हरेक को जला गई.
रात करीब साढ़े ग्यारह बजे ‘बगिया रेस्तरां’ अशोका यात्री निवास होटल (अब इन्द्रप्रस्थ होटल), नई दिल्ली
सुशील शर्मा के कहने पर रेस्तरां पूरी तरह खाली हो चुका था. सुशील शर्मा ने केशव से कह कर रेस्तरां के बाकी कर्मचारियों को भी वहां से भेज दिया. अब अंदर सिर्फ रेस्तरां का मैनेजर केशव और सुशील शर्मा थे. इसके बाद सुशील कार की डिकी से पॉलीथिन बाहर निकालता है. पॉलीथिन में एक लाश थी. एक महिला की लाश।
सुशील लाश के बारे में केशव को झूठी-सच्ची कहानी सुनाता है पर ये नहीं बताता कि लाश किसकी है. जब लाश जलाने में दिक्कत आई तो सुशील शर्मा ने बगिया के मैनेजर केशव को मक्खन के चार स्लैब लाने के लिए भेजा. अब दोनों मिल कर तंदूर में मक्खन डालने लगते हैं. तरीका काम कर जाता है. आग की लौ तेज होती जाती है. पर यहीं एक गड़बड़ भी हो जाती है.
दरअसल तंदूर में डाल कर इंसानी लाश भूनने का काम अभी जारी ही था कि मक्खन की वजह से तंदूर से उठती आग की तेज लपटें और धुएं के गुबार पर रेस्तरां के बाहर फुटपाथ पर सो रही सब्जी बेचने वाली एक महिला अनारो की नजर पड़ जाती है. अनारो को लगता कि शायद रेस्तरां में आग लग गई है. लिहाज़ा अनारो चीख कर शोर मचाने लगती है. अनारो की चीख पास में ही गश्त कर रहे
कॉन्स्टेबल कुंजू ने सबसे पहले जली लाश देखी. उस रात 11 बजे कांस्टेबिल अब्दुल नज़ीर कुंजू और होमगार्ड चंदर पाल जनपथ पर गश्त लगा रहे थे. “आग देख कर जब मैं बगिया रेस्तराँ के गेट पर पहुंचा तो मैंने देखा कि सुशील शर्मा वहाँ खड़ा था और उसने गेट को कनात से घेर रखा था. जब मैंने आग का कारण पूछा तो केशव ने जवाब दिया कि वो लोग पार्टी के पुराने पोस्टर जला रहे थे.”
“मैं आगे चला गया. लेकिन तभी मुझे लगने लगा कि कुछ गड़बड़ ज़रूर है. मैं बगिया रेस्तराँ के पीछे गया और सात-आठ फ़िट की दीवार फलांग कर अंदर आया. वहाँ केशव ने फिर मुझे रोकने की कोशिश की. जब मैं तंदूर के नज़दीक गया तो देखा कि वहाँ एक लाश जल रही थी. जब मैंने केशव की तरफ़ देखा तो उसने कहा कि वो बकरे को भून रहा है. जब मैंने उसे बल्ली से हिलाया तो पता चल गया कि वो बकरा नहीं एक महिला की लाश थी. मैंने तुरंत अपने एसएचओ को फ़ोन मिला कर इसकी सूचना दे दी.”
उस समय कनॉट प्लेस थाने के एसएचओ निरंजन सिंह बताते हैं, “लाश (नैना साहनी) के शव को तंदूर के अंदर रख कर नहीं बल्कि तंदूर के ऊपर रख कर जलाया जा रहा था, जैसे चिता को जलाते हैं. नैना साहनी की बुरी तरह से जली हुई लाश बगिया के किचन के फ़र्श पर पड़ी हुई थी. उसको एक कपड़े से ढका गया था. बगिया रेस्तराँ के मैनेजर केशव कुमार को पुलिस वालों ने पकड़ रखा था.” नैना के शरीर का मुख्य हिस्सा जल चुका था. सिर्फ़ आग नैना के जूड़े को पूरी तरह से नहीं जला पाई थी. आग की गर्मी की वजह से उनकी अतड़ियाँ पेट फाड़ कर बाहर आ गई थीं. अगर लाश आधे घंटे और जलती तो कुछ भी शेष नहीं रहता और हमें जाँच करने में बहुत मुश्किल आती.”
दोनों के बीच मनमुटाव की वजह
“सुशील शर्मा को नैना साहनी पर शक हो गया. वो जब भी घर वापस आता था, वो घर के लैंड लाइन फ़ोन को चेक करता था कि उस दिन नैना की किस किस से बात हुई है.2 जुलाई 1995 को जब सुशील घर आया तो नैना फोन पर बात कर रही थी। घटना के दिन जब सुशील ने अपने घर पर लगे फ़ोन को पुनः डायल किया तो पत चला कि वो करीम मतलूब से बात कर रहीं थी।” सुशील को गुस्सा आ गया और उसने गुस्से में आकर नैना पर लाइसेंसी रिवाल्वर से ताबड़तोड़ तीन फायर कर दिए। इसमें नैना की मौत हो गई। सुशील ने रेस्टोरेंट के मैनेजर केशव की मदद से नैना के शव को तंदूर में जलाने की कोशिश की। इसी कारण इसे तन्दूरी हत्याकांड भी कहा जाता है।
‘तंदूर कांड’ का दोषी सुशील शर्मा करीब 23 साल कैद की सजा काटने के बाद इसी साल वो तिहाड़ जेल से बाहर आया है। शर्मा का कहना है कि वह अब अपने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा करना चाहता है।