Know All About EVM : आप के मन में EVM को लेकर बहुत से सवाल होंगे जैसे, जिन जगहों पर वोटिंग हो चुकी होती है, वहां इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें(EVM) कहां रखी होती हैं. उनमें कब तक वोटिंग का डाटा सुरक्षित रहता है. और कि पोलिंग बूथ से स्ट्रांग रूम (Strong Room) तक ईवीएम कैसे पहुंचती हैं और कैसे होती है उनकी सुरक्षा, जानिए इस पोस्ट में सब कुछ।
कोई भी मतदान ख़त्म होते ही तुरंत पोलिंग बूथ (Pooling Booth) से EVM स्ट्रांग रूम नहीं भेजी जातीं है. प्रीसाइडिंग ऑफिसर EVM में वोटों के रिकॉर्ड का परीक्षण करता है. और सभी प्रत्याशियों के पोलिंग एजेंट को एक सत्यापित कॉपी दी जाती है. इसके बाद EVM को सील कर दिया जाता है. प्रत्याशियों या उनके पोलिंग एजेंट EVM सील होने के बाद अपने हस्ताक्षर करते हैं. और उसके बाद प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि मतदान केंद्र से स्ट्रांग रूम EVM के साथ जाते हैं. और रिजर्व EVM भी इस्तेमाल की गई ईवीएम के साथ ही स्ट्रांग रूम में आनी चाहिए. जब सारी EVM आ जाती हैं. तब स्ट्रांग रूम को सील कर दिया जाता है. प्रत्याशियों के प्रतिनिधि को अपनी तरफ़ से भी सील लगाने की अनुमति होती है.
कैसी होती है स्ट्रांग रूम की सुरक्षा
स्ट्रांग रूम का मतलब है वो कमरा, जहां EVM मशीनों को पोलिंग बूथ से लाकर रखा जाता है. उसकी सुरक्षा अचूक होती है. यहां हर कोई नहीं पहुंच सकता. स्ट्रांग रूम सुरक्षा के लिए चुनाव आयोग पूरी तरह से चाक-चौबंद रहता है. स्ट्रांग रूम की सुरक्षा चुनाव आयोग तीन स्तर पर करता है. इसकी अंदरूनी सुरक्षा का घेरा केंद्रीय अर्ध सैनिक बलों(Central Paramilitary Forces) के जरिए बनाया जाता है. इसके अंदर एक और सुरक्षा होती है, जो स्ट्रांग रूम के भीतर होती है. ये भी केंद्रीय बल के जरिए की जाती है. सबसे बाहरी सुरक्षा घेरा राज्य पुलिस बलों के हाथों में होता है. और दिल्ली में ये काम दिल्ली पुलिस का है.
स्ट्रांग रूम(Strong Rooms) इस तरह से बना होता है कि इसमें केवल एक ओर से एंट्री होती है. अगर किसी स्ट्रांग रूम की कोई दूसरी एंट्री है, तो उसके लिए सुनिश्चित करना होता है कि इसके जरिए कोई स्ट्रांग रूम में दाखिल नहीं हो सके. EVM रखने के बाद स्ट्रांग रूम(Strong Rooms) को सील लगाकर बंद कर दिया जाता है, इस वक्त राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि मौजूद रहते हैं. ये प्रतिनिधि अपनी तरफ़ से भी सील लगा सकते हैं.
स्ट्रांग रूम के एंट्री पाइंट पर सीसीटीवी(CCTV) कैमरा होता है. जिससे हर आने जाने वाले की तस्वीर इस पर रिकॉर्ड होती रहती है. अगर काउंटिंग हॉल स्ट्रांग रूम के पास है तो दोनों के बीच एक मज़बूत घेरा होता है ताकि कोई किसी भी तरह स्ट्रांग रूम तक नहीं पहुंच सके. प्रत्याशियों को भी स्ट्रांग रूम की देखरेख की अनुमति होती है. एक बार स्ट्रांग रूम सील होने के बाद काउंटिंग के दिन सुबह ही खोला जाता है. अगर किसी विशेष परिस्थिति में स्ट्रांग रूम खोला जा रहा है तो यह प्रत्याशियों की मौजूदगी में ही संभव होगा.
स्ट्रांग रूम से काउंटिंग हॉल तक EVM(ईवीएम) ले जाने के लिए, अगर काउंटिंग हॉल और स्ट्रांग रूम(Strong Rooms) के बीच ज़्यादा दूरी है तो दोनों के बीच बैरकेडिंग होनी चाहिए. इसी के बीच से ही EVM(ईवीएम) को काउंटिंग हॉल तक ले जाया जाएगा. और वोटों की गिनती के दिन अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरे लगाए जा सकते हैं. स्ट्रांग रूम से काउंटिंग हॉल तक EVM ले जाने को वीडियो रिकॉर्ड किया जाएगा. ताकि कोई गड़बड़ नहीं हो सके. स्ट्रांग रूम और काउंटिंग हॉल की लोकेशन को लेकर भी कई तरह के मानक हैं.
आप को पता है चुनाव के पहले EVM(ईवीएम) कहां होती है? एक ज़िले में उपलब्ध सभी ईवीएम डिस्ट्रिक्ट इलेक्टोरल ऑफिसर (DEO) की निगरानी में गोदाम में रखी होती हैं. गोदाम में डबल लॉक सिस्टम काम करता है. गोदाम की सुरक्षा में पुलिस बल हमेशा तैनात रहते हैं. इसके साथ ही सीसीटीवी सर्विलांस भी रहता है. चुनाव से पहले गोदाम से एक भी EVM चुनाव आयोग के आदेश के बिना बाहर नहीं जा सकती है. चुनाव के वक़्त ईवीएम की जांच पहले इंजीनियर करते हैं. ये जांच राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में होती है.
अलग-अलग मतदान केंद्रों पर EVM(ईवीएम) का आवंटन पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में होता है. सारी ईवीएम मशीनों के सीरियल नंबर को पार्टियों से साझा किया जाता है. मतदान शुरू होने से पहले ईवीएम के नंबर का मिलान राजनीतिक पार्टियों के एजेंटों की मौजूदगी में किया जाता है. जब सारी मशीनें बैलेट और कैंडिडेट्स के नामों और चुनाव चिह्नों से लैस हो जाती हैं तो स्ट्रांग रूम(Strong Rooms) को पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में सील कर दिया जाता है. एक बार स्ट्रांग रूम बंद होने के बाद तभी खुलता है जब मतदान केंद्रों पर EVM पहुंचाई जाती है.
जब EVM(ईवीएम) मतदान केंद्र के लिए रवाना की जाती है तो रिजर्व EVM यानी कुछ अतिरिक्त ईवीएम भी रखी जाती हैं, जिन्हें रिजर्व ईवीएम कहा जाता है, जो कोई तकनीकी ख़राबी आने की सूरत में बदली जा सकती हैं.
अब बात आती है EVM में डाटा कितने दिनों तक सुरक्षित रहता है, तो EVM(ईवीएम) में जब वोट डाले जाते हैं तो वोटों का डाटा उसकी कंट्रोल यूनिट में सुरक्षित हो जाता है. वैसे तो एक ईवीएम की उम्र 15 साल होती है. इसके बाद उसको रिटायर कर दिया जाता है. लेकिन अगर डाटा की बात करें तो इसमें डाटा को ताउम्र सुरक्षित रखा जा सकता है. इसका डाटा तभी हटाया जाता है जब इसे डिलीट करे नई वोटिंग के लिए तैयार करना होता है.