India’s Fertility Rate: भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, आने वाले कुछ दशकों में भारत भी जापान की तरह शायद बूढ़े-बुजर्गों वाला देश बन जाये. क्योंकि हाल ही में आए एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत कि प्रजनन दर (Fertility Rate) में गिरावट जारी है. और आने वाले दसको में दर और घटेगी. तब देश में बच्चों कि संख्या कम हो जाएगी. देश कि आबादी का संतुलन बिगड़ जायेगा. जिससे कई तरह कि समस्या आ सकती है.
हाल ही कि ये रिपोर्ट के मुताबिक आँकड़े ‘कुल प्रजनन दर(Total Fertility Rate)’ (TFR: प्रति महिला पर कुल बच्चों की औसत संख्या) के संबंध में गिरावट आई हैं. अगर हम बात करें आँकड़ो कि तो भारत की प्रजनन संख्या 1950 में लगभग 6.2 थी, जो गिरकर अब 2 से कम हो गई है. अनुमान ये भी है कि इस सदी के अंत तक ये 1.4 हो सकती है. यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘द लैंसेट’ में हाल ही में प्रकाशित हुई है.
प्रजनन दर (Fertility Rate) किसी भी देश कि 15 से 49 साल कि महिलाओं द्वारा जन्म दिये गये जीवित बच्चों कि संख्या पर निकाली जाती है. ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं, पुरे विश्व कि प्रजनन दर (Fertility Rate) पिछले 70 सालों से आधी रह गई. लेकिन भारत में प्रजनन दर में तेजी से गिरावट हो रही है. आने वाले कुछ दशकों में देश की आबादी बढ़ने की बजाय घट सकती है.
‘द लैंसेट’ की स्टडी रिपोर्ट ने इसका पूर्वानुमान करते हुए बताया कि 2050 तक, हर पांच में से एक भारतीय बुजुर्ग नागरिक होगा, जबकि उनकी देखभाल करने के लिए कम युवा होंगे.
घटती प्रजनन दर के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग, क्लाइमेट चेंज, लाइफस्टाइल और आहार में गड़बड़ी ये सभी जिम्मेदार हैं.
दशकों तक चले परिवार नियोजन कार्यक्रम के कारण ‘कुल प्रजनन दर’ वर्ष 2015-16 में रिपोर्ट किये गए 2.2 से गिरकर इस वर्ष 2.0 से भी कम हो गई है। प्रजनन दर शहरी क्षेत्रों में 1.6 और ग्रामीण भारत में 2.1 से भी कम है।
जैसे-जैसे देश आर्थिक रूप से विकसित होते हैं, बच्चों के पालन-पोषण की लागत बढ़ती है, जिससे परिवारों में कम बच्चे पैदा होते हैं.
महिलाओं सशक्तिकरण और शिक्षा के कारण कैरियर की आकांक्षाएं बढ़ती हैं, जिससे विवाह और बच्चे के जन्म में देरी होती है, जो इस गिरावट में और योगदान देती है.
गर्भनिरोधक तक बेहतर पहुंच, शहरीकरण, परिवार नियोजन और छोटे परिवार के आकार की ओर सामाजिक मानदंडों और मूल्यों में बदलाव भी शामिल हैं.
देश कि आबादी का संतुलन
घटती प्रजनन दर (Falling Fertility Rate) का असर देश की आबादी के संतुलन पर पड़ता है. आबादी में बच्चों, जवानों और बुजुर्गों के बीच संतुलन होना जरूरी है. इसलिए अगर प्रजनन दर 2.1 के आसपास होना जरूरी है. जिससे देश कि आबादी में बच्चों और वयस्कों का संतुलन बना रहता है.
लेकिन यह दर अभी जरूरी स्तर से काफी नीचे हैं.
ऐसे में देश में बुजुर्गों की संख्या बढ़ जाएगी और युवा कामकाजी लोगों की घटती संख्या का विपरीत असर हो सकता है. इससे देश में आर्थिक उत्पादकता कम हो सकती है. देश में आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए अप्रवास पर निर्भरता भी बढ़ सकती है.
बढ़ती बुजुर्ग आबादी के लिए देश में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों और स्वास्थ्य सुधार के इन्फ़्रास्ट्रक्चर पर दबाव बढ़ जाएगा. और रोजगार के ऐसे अवसर उत्पन्न करना आवश्यक हो जाएगा, जो बुजर्गों के कौशल और अनुभव का उपयोग कर सकें. ऐसे में प्राथमिक केयरगिवर्स पर दबाव बढ़ जाएगा, जिन्हें बच्चों और वृद्धों दोनों की देखभाल करनी पड़ेगी.
गिरती फर्टिलिटी दर से दुनिया भर के बच्चों के लिये चिंता और चुनौतिया
विश्व के आधे से ज्यादा यानी कि 204 देशों में से 110 देशों में प्रजनन दर 2.1 से कम है. ऐसी ही स्थिति रही तो सदी के अंत तक 97% देश घटते प्रजनन दर से जूझ रहे होंगे. आने वाले कुछ दशकों में अधिकतर बच्चे दुनिया के कुछ सबसे संसाधन-सीमित क्षेत्रों में पैदा होंगे. और सदी के अंत तक दुनिया के 77% से अधिक जीवित बच्चे निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में जन्म लेंगें.
और ये निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देश पहले ही अनगिनत सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहे हैं. जिसमें जलवायु परिवर्तन, गरीबी, आहार की कमी, कुपोषण, स्वास्थ्य, साफ पानी, हाईजिन जैसी समस्याएं शामिल हैं. अगर इन देशों में जनसंख्या बढ़ती है, तो इन समस्याओं का सामना करने के लिए पहले से तैयार रहने की जरूरत होगी.