Hockey World Cup 2023 का आगाज हो चुका है। भारत ने अपने पहले मैच में स्पेन को 2-0 से हराकर अपने अभियान की शानदार शुरुआत की है। भारतीय हॉकी टीम 46 साल बाद चैंपियन बनने को इस टूर्नामेंट में उतरी है। अब विपक्षी टीमों की चुनौतियों से पार पाकर देश को विश्व चैंपियन बनाना चाहते हैं। इनमें से एक हैं नीलम खेस।
राउरकेला (Rourkela) के कादोबहाल गांव के रहने वाले 24 साल के नीलम खेस (Nilam Xess). राउरकेला के बिरसा मुंडा स्टेडियम (Birsa Munda Stadium) में जितने लोगों के बैठने की क्षमता है, उससे भी कम है नीलम के गांव की आबादी।
खेल से लगाव था, तो बगैर घास के मैदान में ही हॉकी लड़ानी शुरू कर दी. स्कूल से आने के बाद माता-पिता के साथ आलू और गोभी के खेत में काम करते और फिर शाम में पूरा करते अपना शौक।
24 साल के नीलम खेस भारतीय टीम के सबसे अहम डिफेंडर में से एक हैं। 13 जनवरी को स्पेन की टीम भारत के खिलाफ कोई गोल नहीं कर सकी। इसमें नीलम का भी अहम योगदान था, जो दीवार की तरह गोल पोस्ट और स्पेन के खिलाड़ियों के बीच खड़े थे। नीलम खेस अब टीम इंडिया के लिए लगातार कमाल कर रहे हैं और किसी टीम के खिलाड़ियों के लिए उनके पार जाकर गोल करना बहुत मुश्किल है। हालांकि, नीलम खेस का जीवन इससे भी ज्यादा मुश्किल रहा है।
नीलम खेस ने जब पहली बार महज 7 साल की उम्र में हॉकी पकड़ी थी , तब उनकी उम्र 7 साल थी. शुरुआत टाइम पास करने के लिए हुई और बाद में डिफेंडर इसलिए बन गए क्योंकि फॉरवर्ड के तौर पर दूसरे लोग खेलना और गोल करना चाहते थे. 2017 तक नीलम के गांव में बिजली नहीं थी और न ही नीलम के परिवार के पास लालटेन खरीदने के पैसे. बोतल में छेद कर उसमें थोड़ा मिट्टी तेल डाल परिवार रात गुजारता था।