Russia-Ukraine War: रूस और यूक्रेन युद्ध होने की 5 बड़ी वजहें

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Russia-Ukraine War : रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया और ये माना जा रहा है कि रूस और यूक्रेन दोनों के बीच तनाव वर्ष 2014 से यूक्रेन में उस विद्रोह के बाद शुरू हुआ, जिसमें 130 से ज्यादा लोग मारे गए थे. इसके बाद रूस(Russia) समर्थक राष्ट्रपति ‘विक्टर यांकोविच’ को देश छोड़कर रूस भागना पड़ा था. रूस को ये अच्छा न लगा. फिर धीरे-धीरे यूक्रेन यूरोपीय यूनियन और नाटो की ओर झुकता गया. वैसे वैसे रूस को नागवार गुजरने लगा. रूस के राष्ट्रपति पुतिन (Vladimir Putin) लगातार यूक्रेन (Ukraine) को बाज आने की चेतावनी देने लगे. और अब ये पूरा मामला कई वजह को मिलाकर इतना बड़ा हो गया है कि दोनों देश युद्ध के मैदान में आमन-सामने नजर आने लगे हैं. हालांकि इसके पीछे कुछ वजहें सोवियत संघ के पतन के बाद अलग अलग हुए तमाम राष्ट्रों के आपसी तनावपूर्ण संबंधों और असहज रिश्तों पर भी हैं. रूस के साथ उनके रिश्ते दादागिरी वाले ज्यादा महसूस किए गए. डेढ़ दशक पहले रूस खुद सोवियत संघ के बिखराव के बाद डगमगा रहा था लेकिन जैसे जैसे रूस संभला और उसने आर्थिक से लेकर सैनिक ताकत बटोरकर आज खुद को एक बड़ी ताकत के तौर पर खड़ा कर लिया है.
वर्ष 2014 का विद्रोह :
वर्ष 2013 के आखिर में यूक्रेन (Ukraine) में एक विद्रोह शुरू हुआ, जिसे रिवोल्यूशन ऑफ डिग्निटी के तौर पर जाना जाता है. इसे मेडन रिवोल्यूशन भी कहा जाता है. इस विद्रोह की मुख्य मांग थी रूस (Russia) समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यांकोविच को सत्ता से हटाना. क्युकी राष्ट्रपति विक्टर यांकोविच यूरोपीय यूनियन से जुड़ने और फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर दस्तखत करने से मना कर चुके थे. फिर इसके विरोध में पूरे देश में असंतोष शुरू हो गया. जगह जगह हिंसा, प्रदर्शन और पुलिस से टकराव शुरू हो गए. 130 से ज्यादा लोग इसमें मारे गए. 18 पुलिस अफसरों की भी जान गई. इसके बाद रूस समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यांकोविच को देश छोड़कर रूस भागना पड़ा था. रूस को ये नागवार गुजरा.


सोवियत संघ खेमे से देशों के पाला बदलने की नाराजगी :
सोवियत संघ के टूटने के बाद एक एक करके कई पूर्व सोवियत देशों ने अपना पाला बदला और कई यूरोपीय यूनियन में शामिल हो गए और कई देशों ने नाटो की भी सदस्यता ले ली. ऐसे हर कदम को रूस (Russia) अपने ऊपर बढ़ते खतरे के तौर पर देख रहा था. और यूक्रेन (Ukraine) भी चाहता था कि वो रूस, यूरोपीयन यूनियन और नाटो के बीच संतुलन साधे रखने की बजाए अपना भविष्य यूरोपीय यूनियन और नाटो के साथ देखे.
वर्ष 2019 में यूक्रेन में संविधान में बदलाव :
वर्ष 2019 में यूक्रेन ने संविधान में बदलाव करके देश को रणनीतिक तौर पर यूरोपीय यूनियन और नाटो सदस्यता के करीब ला दिया. इसके विरोध में वर्ष 2021 और 2022 में रूसी (Russia) सेनाएं बॉर्डर पर आ डटीं और दोनों देशों में तनाव शुरू हो गया था. इस पूरे तनाव में अमेरिका भी बीच में कूद गया था. अमेरिका ने ना केवल यूक्रेन (Ukraine) को मदद की पेशकश की बल्कि हथियार भी देने शुरू कर दिए.
रूस को लगा कि उसे घेरा जा रहा है :
वर्ष 2004 में चेक गणराज्य, एस्तोनिया, हंगरी, लिथुआनिया, लातविया, पोलैंड और स्लोवाकिया यूरोपीय यूनियन ज्वाइन कर चुके थे. इसके बाद 2007 में बुल्गारिया और रोमानिया ने भी ऐसा ही किया. रूस (Russia) को लग रहा था कि अगर यूक्रेन ने भी ऐसा कर लिया तो उसके चारों ओर काला सागर के साथ एक नई दीवार खड़ी हो जाएगी और उसे घेर लिया जाएगा. और दूसरी तरफ रूस के पड़ोसी दक्षिण कोरिया और जापान पहले से ही अमेरिका के खास सहयोगी हैं. ये सब रूस को नागवार गुजरा. इसी वजह से उसने यूक्रेन (Ukraine) में दोनेत्स्क और लुहांस्क में विद्रोहियों को मदद देना शुरू किया.

यूक्रेन को अपने असर में रखने का हठ :
बेशक अब यूक्रेन (Ukraine) जिस जगह खड़ा है, उसमें वो रूस के हाथों से निकल ही चुका है लेकिन पुतिन कतई नहीं चाहते कि ये देश उनके प्रभाव से बाहर निकले. इसी वजह से पहले तो उन्होंने यूक्रेन के एक हिस्से क्रीमिया को जबरन रूस (Russia) में मिलाया तो उसके बाद अब दोनेत्स्क और लुहांस्क को आजाद घोषित कर उसे मान्यता भी दे दी.
कुल मिलाकर मामला ये है कि पुतिन (Vladimir Putin) को लग रहा है कि अगर यूक्रेन नाटो की ओर गया तो फिर रूस के पड़ोस में एक ऐसा देश बढ़ जाएगा, जो नाटो और अमेरिका के असर में होगा और वो उसके लिए असहज स्थिति होगी. हकीकत ये हो गई है कि यूक्रेन में अब रूस और पुतिन से सबसे ज्यादा घृणा की जाती है. यूक्रेन की सरकार ऐसी सरकार है, जिसको रूस फूटी आंखों देखना नहीं चाहता, वो इसे अमेरिकी असर वाली सरकार मानता है.

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